tag:blogger.com,1999:blog-5580916961734377135.post411708547552169962..comments2023-06-13T15:50:59.542+05:30Comments on Dr.Satya Pal Singh: 11.01.2011Dr.Satya Pal Singhhttp://www.blogger.com/profile/08673676449763386051noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-5580916961734377135.post-60151347964054453742017-09-04T20:44:55.457+05:302017-09-04T20:44:55.457+05:30द्यौः शान्तिरन्तरिक्षं शान्त: पृथिवी शान्तिरापः शा...द्यौः शान्तिरन्तरिक्षं शान्त: पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः। वनस्पतय:|शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्ति: सर्वं शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि|यजु 36.17 <br />दयानंद पदार्थः-हे मनुष्यो! जो (द्यौः, शान्तिः) प्रकाशयुक्त पदार्थ शान्तिकारक (अन्तरिक्षम्) दोनों लोक के बीच का आकाश (शान्तिः) शान्तिकारी (पृथिवी) भूमि (शान्तिः) सुखकारी निरूपद्रव<br />(आपः) जल वा प्राण (शान्तिः) शान्तिदायी (ओषधयः) सोमलता आदि ओषधियां (शान्तिः) सुखदायी (वनस्पतयः) वट आदि वनस्पति (शान्तिः) शान्तिकारक (विश्वे, देवाः) सब विद्वान् लोग<br />(शान्तिः) उपद्रव निवारक (ब्रह्म) परमेश्वर वा वेद (शान्तिः) सुखदायी (सर्वम्) सम्पूर्ण वस्तु(शान्तिः) शान्तिकारक (शान्तिरेव) शान्ति ही (शान्तिः) शान्ति (मा) मुझको (एधि) प्राप्त होवे (सा)<br />वह (शान्तिः) शान्ति तुम लोगों के लिये भी प्राप्त होवे|यजु36.17<br />दयानंद भावार्थः-हे मनुष्यो! जैसे प्रकाश आदि पदार्थ शान्ति करनेवाले होवें, वैसे तुम लोग प्रयत्न करो | यजु 36.17 <br />Subodh Kumarhttps://www.blogger.com/profile/01830675267031465110noreply@blogger.com